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बचपन और विकास

PRAJAPATI
PRAJAPATI
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बच्चे  देश का भविष्य होते हैं ! इसी बाल रूप को संवार कर ही कोई बुलंदियो को छू सकता है ! हाल ही में बाल मजदुर के खिलाफ़ काम करने के चलते कैलाश सत्यार्थी को मिले शांति के नोबेल पुरस्कार पर हम भले ही  जश्न मना रहे हों , इस समाज का दूसरा चिंताजनक पहलु भी है ! इस सम्मान में  आज़ादी के पैसठ वर्ष बाद भी भारतीय समाज का भयावक चेहरा सामने आया है ! जिसकी चमक -दमक के पीछे बाल मजदूरी की सिसकती सिसकियाँ छिपी है ! बाल  मजदूरी सभ्य-स्वच्छ समाज के माथे पर कलंक है , तमाम नियम- कानूनों के बावज़ूद भी आज तक हम इसे ख़त्म नहीं कर पाए है ! यह समय आत्म अवलोकन करने का है कि हमसे आखिर चूक कहाँ हुई ! दुनिया में अपना डंका बजाने की हसरत पालने वाले भारत देश से बाल मजदूरी नामक कलंक को ख़त्म करने के लिये हमें आगे आना होगा !   बच्चों के आधिकारों की रक्षा के लिये लंबी फेह्रियत बना दी गई है , बावजूद इसके कभी दक्षिणी दिल्ली में फलक तस्करी की शिकार होती है तो कभी गाँधी नगर में गुडिया सामूहिक दुष्कर्म का दंश झेलती है , मासूम जहान्वी इण्डिया गेट पर भी सुरक्षित नहीं ! कभी स्नेह,तो कभी प्यार के नाम बच्चो का यौन शोषण किया जा रहा है !

ओमप्रकाश प्रजापति

ट्रू मीडिया पत्रिका

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